Thursday, April 19, 2007

कैसे कहे कि रोये हम...

 



मेरी बेबस सी ये ज़ुबान क्या कहे तुम से,
मगर बहुत रोए रात हम तुझे याद कर के...

वो दीवानगी मेरी, और वो बेबाकपन मेरा,
बस हँसते रहे हम आँखों मे आँसू भर के...

जाने क्यों ना समझे तुम मेरे ज़ज़्बातों को,
हमने तो रख दी हर ख़्वाहिश बे-लिबास कर के...

ये पूछते है लोग, क्या हुआ है तुम्हे "शिखा",
क्यों जी रही हो इस तरह तुम हर रोज़ मर के...

मगर बेबस है ज़ुबान हम क्या कहे तुमसे,
कैसे कहे की रोए है तुम्हे याद कर के...

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