Wednesday, April 25, 2007

एक कोशिश... तुझे भूल जाने की!!!

Missing




तुझे भूलने की कोशिश में,
जब दिल ये ज़िद पे आ गया,
मैं आँख मूँद के बैठ गयी,
तू ख़याल पे फिर छा गया...

ये धड़कन कहीं रुक जाए ना,
मेरी नब्ज़ ठहर ना जाए कहीं,
तूने वक़्त किया मेरा लम्हा लम्हा,
मगर मौत को आसान बना गया...

मेरी हर दलील को किया अनसुनी,
मेरी फ़रियाद भी तो सुनी नहीं,
मैं हैरान हूँ, हाँ कुछ परेशान हूँ,
ऐसा फ़ैसला तू मुझे सुना गया...

मुझे चाँद की कभी तलब ना थी,
मुझे सूरज की भी फ़िक्र नहीं,
बस आँख खोलना ही चाहते थे हम,
मगर तू रोशनी ही बुझा गया....

बेशक भूलना तुझे चाहा बहुत,
हँस कर कभी, रो कर कभी,
दे कर ये आँसुओं की सौगात मुझे,
तू दामन अपना बचा गया....

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Saturday, April 21, 2007

बाबुल!!!



छलके है आँखें, तरसे है मन ये,
रुकी हुई है धड़कन, रुकी रुकी साँसें
डगमगा रही हूँ मैं फिर चलते चलते,
मुझे थामा था मेरे बचपन मे जैसे,
गुडिया को अपनी अपना हाथ फिर थमा दे
बाबुल मुझे फिर से तू अपने पास बुला ले

वो आँगन का झूला क्या अब भी पड़ा है
वो तुलसी का पौधा क्या अब भी खड़ा है
वो स्तरंगी छतरी, वो बारिश का मौसम,
काग़ज़ की कश्ती फिर मेरे लिये एक बना दे
एक बार मुझको फिर से वो बचपन लौटा दे
बाबुल मुझे फिर से तू अपने पास बुला ले

वो गुडिया की कंघी, वो खेल खिलौने,
वो मेरा तकिया और वो मेरे बिछौने,
मेरी कुछ किताबें थी, कुछ अधूरे सपने,
सपने वो मुझको एक बार फिर से लौटा दे
या सामान मेरा गंगा मे बहा दे...
बाबुल मुझे फिर से तू अपने पास बुला ले

कैसे ज़िगर के टुकड़े को कर दिया तूने पराया,
डोली के वक़्त तूने जब कलेज़े से लगाया,
मैने सुना था बाबुल तेरा दिल रो रहा था,
कैसे रोते दिल को तूने फिर था मनाया
बाबुल वैसे ही दिल को एक बार फिर तू मना ले
बाबुल मुझे फिर से तू अपने पास बुला ले

लगी थरथराने जब लौ ज़िन्दगी की,
मैने लाख तुझको दिये थे इशारे,
माँ को भेजी थी ख़त मे एक कली मुरझाई,
भेजी ना राखी, छोड़ दी भाई की सूनी कलाई
मगर बेटी तुम्हारी हो चुकी थी पराई,
शायद नसीब अपना समझा ना पाई,
आखिरी बार मेरी आज तुम फिर कर दो विदाई
लेकिन विदाई से पहले अपनी नज़र मे बसा ले
बाबुल मुझे फिर से तू अपने पास बुला ले

मुझे ख़ाक करने को चला था जब ज़माना,
क्यों रोए थे तुम भी, मुझे ये बताना,
आँखों मे अब ना आँसू फिर कभी लाना
भटक रही है रूह मेरी, तेरे प्यार को फिर से
माथे पे हाथ रख कर मेरी रूह को सुला दे
बाबुल मुझे फिर से तू अपने पास बुला ले

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Thursday, April 19, 2007

कैसे कहे कि रोये हम...

 



मेरी बेबस सी ये ज़ुबान क्या कहे तुम से,
मगर बहुत रोए रात हम तुझे याद कर के...

वो दीवानगी मेरी, और वो बेबाकपन मेरा,
बस हँसते रहे हम आँखों मे आँसू भर के...

जाने क्यों ना समझे तुम मेरे ज़ज़्बातों को,
हमने तो रख दी हर ख़्वाहिश बे-लिबास कर के...

ये पूछते है लोग, क्या हुआ है तुम्हे "शिखा",
क्यों जी रही हो इस तरह तुम हर रोज़ मर के...

मगर बेबस है ज़ुबान हम क्या कहे तुमसे,
कैसे कहे की रोए है तुम्हे याद कर के...

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Thursday, April 12, 2007

दर्द की हद!!!

 




ख्वाबों और ख़्यालों का चमन सारा जल गया,
ज़िंदगी का नशा मेरा धुआ बन कर उड़ गया...
जाने कैसे जी रहे है, क्या तलाश रहे है हम,
आँसू पलकों पर मेरी ख़ुशियों से उलझ गया...



सौ सदियों के जैसे लंबी लगती है ये ग़म की रात,
कतरा कतरा मेरी ज़िंदगी का इस से आकर जुड़ गया...
मौत दस्तक दे मुझे तू, अब अपनी पनाह दे दे,
ख़तम कर ये सिलसिला, अब दर्द हद से बढ़ गया...


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Sunday, April 8, 2007

बेज़बान हो गये है हम!!!

 



कुछ ना सुना मुझे दिल की बात,
मेरा दिल नहीं मेरे बस मे आज...
गमो की बदली से है ढका हुआ,
मेरा चाँद अभी है छुपा हुआ...
आज उदास उदास सी हर राह है
और रूठा हुआ सा मेरा खुदा है...

ये प्यार भी कितना अजीब है,
वो मेरी नज़र के इतने क़रीब है...
मगर समझ के भी है जो नासमझ,
कैसे दिल से मेरे वो गया उलझ...
वह चुप रहा, मैं भी चुप रही, 
दरमियाँ बिखरी फिर ख़ामोशी वही....

क्यों मज़बूरियाँ हमसे जीत गयी,
क्यों मुहब्बत की रुत्त बीत गयी ...
सब सवाल अधूरे से रह गये,
बस दो आँसू रुखसार पे बह गये... 
किसी को क्या कहे हम अपना ग़म,
सच ..... बेज़ुबान से हो गये है हम.....

Wednesday, April 4, 2007

खामोशी की आदत!!!

Lonely


 



मुझे इतनी भी सज़ा ना दे,
मेरे प्यार की इंतहा ना ले...
रुक जा ए चाँद थम जा ज़रा,
दो घड़ी मुझे भी निहार ले...
मैं टूट कर बिखर चली,
मेरी ख़ाक को यूँ हवा ना दे...



दो बोल तुझसे सुन सकूँ कभी,
मैं इंतज़ार मे सदा रही...
तू चल पड़ा मुझे छोड कर,
दीवार सी मैं खड़ी रही... 
सहम गयी हूँ बस इस बात से,
कहीं मुझको तू भुला ना दे...



ये क्या किया तूने ए दिल बता,
प्यार तूने क्यों किया भला...
कैसे कहे अब ये मेरी ज़ुबान,
इक बार तो मुझको गले लगा...
ख़ामोशी की ये आदत कही,
मुझे बेजुबान ही बना ना दे...

Monday, April 2, 2007

आओ कुछ बात क्रे!!!

 



आओ कुछ बात करे, हम तन्हा कय़ों है?
आओ कुछ दिल की कहे, हम तन्हा कय़ों है?
कोई बस इतना बता दे, हम तन्हा कय़ों है?
कोई तो मुझको सदा दे, हम तन्हा कय़ों है?
रोज़ मिलती है मुझे, ये कोई अजनबी जैसे,
रूठी हुई है मुझसे, मेरी परछाई ऐसे,
कोई समेटो ज़रा, कोई तो बुला दो इसको,
मुझसे थोडी बहुत पह्चान करा दो इसको,
आओ हाथ थामो मेरा, हम तन्हा कय़ों है?
दिल की धड्कन का शोर कभी सुनता नही,
खवाब भी आखों मे अब कोई पलता नही,
आईना है मगर इसमें कुछ नज़र आता नही,
खाली घर का खालीपन कुछ भाता नही,
मुझको खुद से मुलाकात करा दे ऎ-खुदा,
कोई तो मुझको दुआ दे, हम तन्हा कय़ों है?

Sunday, April 1, 2007

Chaand ki Tarah Pyaar bhi!!!

 


chaand



Humne mehboob ki aankhon par
Haathon ko apne rakh kar dekha…
Nafraat ke aangaaro ko jab unkii
Nazaron mey dehekta dekhaa….
Aur Unhii haathon ko dil par rakh kar,
Apnii Hasraton ko khud apnii Aankhon se Jaltaa dekhaa…
Chand ki tarah humne Pyar ko bhi marrtaa dekha…

 



Ek ajnabii si nazar deewar ko bhedtii hui,
Ek ukhdii hui saans jigar ko chedtii huii…
Khud ki talaash mey bhatak rahii hai ruhh,
Do pal ka bhii nahin jaise mere naseeb mey sukoon…
Ghar ke saajo-samaan ko khud par Humne haste dekha…
Apne Wajood ko bhi sajawat ka saamaan Bante dekha…

 



Harr rishte par ek maut khud ki paayii hai,
Bazaar mey jaise bolii khud apni lagayii hai…
Koii zeher jaise apne haathon pee liya humne,
Zehar pee ke bhee magar kaise jee liya humne…
Khulii aankhon sey kaisa khaufnaak yeh sapnaa dekha…
Kaii Zehreele naagon ko kadmon sey lipatt.tey dekha…

 



Ek hi manzar yeh har raat ka hota hai,
Chand bhi aakar meri chhatt pe rota hai…
Palkon mey namii hoti hai bikhrii bikhrii…
Dil phir bhi nayii umeed koi pirotaa hai…
Woh toh takkiye ko aangosh mey le lete hai,
Jaane kaise woh chain ki neend so lete hai…
Raat ki raani ko kabhii khidkii pe Mehekta dekha…
Humne raaton ko aankhon aankhon mey guzartaa dekhaa…

 


अब िहं्दी (देव्नग्री) में.....