Wednesday, September 24, 2008
Friday, August 10, 2007
इक मुलाकात जरूरी है!!!
In first stanza.. Poetess says, that she wants to unite with her loved one. And if they cant unite, atleast they should talk about it. She is referring her dreams of meeting her loved one as pearls in the ocean of heart; which she dont want to be shattered.
In second stanza.. she wants the spring to come again in her life, but she knows it well that Past can not be re-lived as future. She says, when there is breeze then even some green leaves fall down, so how could one ask a dried flower to blossom again. She is referring herself as that dried flower.
In Third Stanza.. She is telling her loved one not to be upset because of separation. She says, that her memories will make his time go by. Also she is not considered about whether whole universe is upset with her; but she says, if only her loved one will be upset with her.. She will really die.
In Last Stanza.. She tells that her loved one is in her thoughts each and every moment. Every question from her heart always ask about Him only. And she is aware his loved one also thinks about her this much only.. then how could he say not to think about him...:)
है दिल में ख़वाईश की तुझसे इक मुलाक़ात तो हो,
मुलाक़ात ना हो तो फिर मिलने की कुछ बात तो करो,
मोती की तरह समेट लिया है जिन्हे दिल-ए-सागर मे,
ख़वाब सज़ा के, उन ख्वाबों को रुस्वा ना करो...
बहुत अरमान है की फिर से खिले कोई बहार यहाँ,
ये मालूम भी है की जा कर वक़्त आया है कहाँ,
हवा चलती है तो टूट जाते है ह्रे पत्ते भी तो कई,
तो सूखे फूलों से खिलने की तुम इलत्ज़ा ना करो...
ना ग़म करना तुम, ना उदास होना कभी जुदाई से,
वक़्त क्ट ही जाएगा तुम्हारा मेरी याद-ए-तन्हाई से,
ये दुनिया रूठ जाए हमसे तो भले ही रूठी रहे,
सच मर जाएँगे हम, तुम सनम रूठा ना करो...
लम्हा दर लम्हा बसे रहते हो मेरे ख़यालों मे,
ज़िक्र तुम्हारा ही होता है मेरे दिल के हर सवालों मे,
लो लग गयी ना हिचकियाँ तुम्हे अब तो कुछ समझो,
कह दो की "शिखा" मेरे बारे मे इतना सोचा ना करो...
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Wednesday, August 8, 2007
ख्वाब हो तुम या कोई हकीकत!!!
This Poetry is about a dream of love entering someone's life. That, How it appeared to a very beautiful dream and when being awake, it disappeared leaving only those beautiful memories. That, How a lonely heart feels to be completed by the very presence of that dream person. He seems like a glass palace who ligtens up the abondoned heart of the Dream-weaver. The dreamweaver wants that dream-person to be in her memories for always but she knows that he is mere a dream, so she feels sad for it. Lastly she says, she knew that it is an incomplete dreams which she wish could be a reality someday and this is why she is alive.
आँख खुलते ही ओझल हो जाते हो तुम,
ख्वाब बन के ऐसे क्यों सताते हो तुम...
गमों को भुलाने का एक सहारा ही सही,
मेरे मुरझाए हुए दिल को बहलाते हो तुम...
दूर तक बह जाते है जज़्बात तन्हा दिल के,
हसरतों के क़दमों से लिपट जाते हो तुम...
शीश महल की तरह लगते हो मुझको तो,
खंडहर हुई खव्हाईशोँ को बसाते हो तुम...
यादों की तरह क़ैद रहना मेरी आँखों मे,
आँसू बन कर पलकों पे चले आते हो तुम...
तुम्हारी अधूरी सी आस मे दिल ज़िँदा तो है
साँस लेने की मुझको वजह दे जाते हो तुम...
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Thursday, June 21, 2007
This Hurts Me A Lot...
Thanks a lot to all the visitors to Pages From My Diary.... :)
Yet.... There's something... I would like to add here... Many People are copying my work, or in easy words.... They are stealing my work, without mentioning my name anywhere where they post it... :( And also, upon being caught up, they insist it is their work.... This really feels sad, and depressing to me... After all, I am a human Being, so these things hurt a lot... :(
And, this is the one major reason, I am not posting anything new here... Frankly speaking... I could not....
I know, Net world is full of these kind of people, but Its a request, this budding Poetess wants to say to all....
Please don't do this to me... Please Help me Grow... :( Please Understand my Feelings... Atleast mention my name wherever u post my Work....
Again Thanks a lot... and Keep Smiling always,
God Bless You All....
Wednesday, April 25, 2007
एक कोशिश... तुझे भूल जाने की!!!
तुझे भूलने की कोशिश में,
जब दिल ये ज़िद पे आ गया,
मैं आँख मूँद के बैठ गयी,
तू ख़याल पे फिर छा गया...
ये धड़कन कहीं रुक जाए ना,
मेरी नब्ज़ ठहर ना जाए कहीं,
तूने वक़्त किया मेरा लम्हा लम्हा,
मगर मौत को आसान बना गया...
मेरी हर दलील को किया अनसुनी,
मेरी फ़रियाद भी तो सुनी नहीं,
मैं हैरान हूँ, हाँ कुछ परेशान हूँ,
ऐसा फ़ैसला तू मुझे सुना गया...
मुझे चाँद की कभी तलब ना थी,
मुझे सूरज की भी फ़िक्र नहीं,
बस आँख खोलना ही चाहते थे हम,
मगर तू रोशनी ही बुझा गया....
बेशक भूलना तुझे चाहा बहुत,
हँस कर कभी, रो कर कभी,
दे कर ये आँसुओं की सौगात मुझे,
तू दामन अपना बचा गया....
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Saturday, April 21, 2007
बाबुल!!!
छलके है आँखें, तरसे है मन ये,
रुकी हुई है धड़कन, रुकी रुकी साँसें
डगमगा रही हूँ मैं फिर चलते चलते,
मुझे थामा था मेरे बचपन मे जैसे,
गुडिया को अपनी अपना हाथ फिर थमा दे
बाबुल मुझे फिर से तू अपने पास बुला ले
वो आँगन का झूला क्या अब भी पड़ा है
वो तुलसी का पौधा क्या अब भी खड़ा है
वो स्तरंगी छतरी, वो बारिश का मौसम,
काग़ज़ की कश्ती फिर मेरे लिये एक बना दे
एक बार मुझको फिर से वो बचपन लौटा दे
बाबुल मुझे फिर से तू अपने पास बुला ले
वो गुडिया की कंघी, वो खेल खिलौने,
वो मेरा तकिया और वो मेरे बिछौने,
मेरी कुछ किताबें थी, कुछ अधूरे सपने,
सपने वो मुझको एक बार फिर से लौटा दे
या सामान मेरा गंगा मे बहा दे...
बाबुल मुझे फिर से तू अपने पास बुला ले
कैसे ज़िगर के टुकड़े को कर दिया तूने पराया,
डोली के वक़्त तूने जब कलेज़े से लगाया,
मैने सुना था बाबुल तेरा दिल रो रहा था,
कैसे रोते दिल को तूने फिर था मनाया
बाबुल वैसे ही दिल को एक बार फिर तू मना ले
बाबुल मुझे फिर से तू अपने पास बुला ले
लगी थरथराने जब लौ ज़िन्दगी की,
मैने लाख तुझको दिये थे इशारे,
माँ को भेजी थी ख़त मे एक कली मुरझाई,
भेजी ना राखी, छोड़ दी भाई की सूनी कलाई
मगर बेटी तुम्हारी हो चुकी थी पराई,
शायद नसीब अपना समझा ना पाई,
आखिरी बार मेरी आज तुम फिर कर दो विदाई
लेकिन विदाई से पहले अपनी नज़र मे बसा ले
बाबुल मुझे फिर से तू अपने पास बुला ले
मुझे ख़ाक करने को चला था जब ज़माना,
क्यों रोए थे तुम भी, मुझे ये बताना,
आँखों मे अब ना आँसू फिर कभी लाना
भटक रही है रूह मेरी, तेरे प्यार को फिर से
माथे पे हाथ रख कर मेरी रूह को सुला दे
बाबुल मुझे फिर से तू अपने पास बुला ले
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Thursday, April 19, 2007
कैसे कहे कि रोये हम...
मेरी बेबस सी ये ज़ुबान क्या कहे तुम से,
मगर बहुत रोए रात हम तुझे याद कर के...
वो दीवानगी मेरी, और वो बेबाकपन मेरा,
बस हँसते रहे हम आँखों मे आँसू भर के...
जाने क्यों ना समझे तुम मेरे ज़ज़्बातों को,
हमने तो रख दी हर ख़्वाहिश बे-लिबास कर के...
ये पूछते है लोग, क्या हुआ है तुम्हे "शिखा",
क्यों जी रही हो इस तरह तुम हर रोज़ मर के...
मगर बेबस है ज़ुबान हम क्या कहे तुमसे,
कैसे कहे की रोए है तुम्हे याद कर के...
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